बांग्लादेश ट्रिब्यूनल ने शेख हसीना को जीवनभर के लिए फांसी की सजा सुनाई, भारत में शरण लेकर बैठी हैं

/ द्वारा रविष्टर नवयान / 0 टिप्पणी(s)
बांग्लादेश ट्रिब्यूनल ने शेख हसीना को जीवनभर के लिए फांसी की सजा सुनाई, भारत में शरण लेकर बैठी हैं

बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल ने 17 नवंबर, 2025 को बेनामी तरीके से पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को फांसी की सजा सुनाई। ये सजा 2024 के जुलाई-अगस्त में हुए छात्र आंदोलन के दौरान 1,400 से 1,500 लोगों की मौत और 25,000 से अधिक घायलों के लिए दी गई है। ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता जज गोलाम मोर्तुज़ा मोजुम्दर ने की, जिन्होंने 453 पृष्ठों के फैसले में कहा कि हसीना ने सुरक्षा बलों को मारक हथियारों का इस्तेमाल करने के लिए आदेश दिए और इसकी रोकथाम के लिए कुछ नहीं किया। ये फैसला राष्ट्रीय टीवी पर लाइव प्रसारित हुआ — और ढाका के अदालत कक्ष में जब सजा की घोषणा हुई, तो कई वकीलों ने खुशी में तालियां बजाईं।

क्या था आरोप?

ट्रिब्यूनल ने हसीना के खिलाफ पांच आरोप दर्ज किए थे, लेकिन उनमें से केवल दो पर दोषी पाया गया: पहला — आदेश देकर सुरक्षा बलों को घातक बल का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करना; दूसरा — ड्रोन, हेलीकॉप्टर और बंदूकों का इस्तेमाल करने का आदेश देना। अभियोजक मोहम्मद ताजुल इस्लाम ने कहा, "अगर हर एक मौत के लिए अलग सजा देनी होती, तो उन्हें 1,400 बार फांसी देनी पड़ती।" इसके अलावा, पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान कमाल को भी फांसी की सजा सुनाई गई, जबकि पूर्व पुलिस महानिरीक्षक चौधरी अब्दुल्लाह अल-मामून को पांच साल की जेल हुई — क्योंकि उन्होंने जांच में सहयोग किया।

हसीना का जवाब: "ये ट्रिब्यूनल बेकार है"

शेख हसीना, जो 5 अगस्त, 2024 को बांग्लादेश छोड़कर दिल्ली में शरण लेकर रह रही हैं, ने फैसले को "झूठा, राजनीतिक और बेइंसाफ" कहा। उनकी पार्टी, अवामी लीग, के फेसबुक पेज पर जारी बयान में उन्होंने कहा, "ये ट्रिब्यूनल किसी अनिर्वाचित सरकार द्वारा बनाया गया है, जिसका कोई लोकतांत्रिक मंजूरी नहीं।" उन्होंने अंतरिम नेता मुहम्मद यूनुस को आरोप लगाया कि वे अवामी लीग को नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं। ये बयान देखकर लोगों के मन में एक सवाल उठता है — क्या भारत उन्हें बांग्लादेश भेजेगा?

भारत का चुनौतीपूर्ण रुख

भारत ने अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भारत इस मामले में बहुत सावधान रहेगा। हसीना एक बड़ी राजनीतिक व्यक्तित्व हैं, और उनके खिलाफ फांसी की सजा देना एक ऐसा प्रतीक है जो भारत के लिए भी असुविधाजनक हो सकता है। फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, हसीना ने अंतरिम सरकार को चुनौती दी है: "मुझे भेजो, अगर तुम्हारे पास साहस है।" लेकिन भारत के लिए ये एक राजनीतिक बम है — अगर वे उन्हें भेज दें, तो उनकी निजी सुरक्षा और राजनीतिक भविष्य का सवाल उठेगा। अगर नहीं भेजेंगे, तो बांग्लादेश की अंतर्राष्ट्रीय छवि को नुकसान होगा।

मानव अधिकार और न्याय का बड़ा सवाल

मानव अधिकार और न्याय का बड़ा सवाल

अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार संगठनों ने इस फैसले को चिंता के साथ देखा है। यूएन की एक रिपोर्ट ने 2024 के दौरान हुए अत्याचारों को स्वीकार किया है, लेकिन उसने यह भी सवाल उठाया — क्या न्याय का अर्थ फांसी है, या यह एक ऐसा अपराध है जिसके लिए जेल और सुधार कार्यक्रम काफी हैं? क्या एक राजनीतिक विरोधी को मारने के लिए फांसी देना वास्तविक न्याय है? या यह बस एक राजनीतिक बदला है?

कुछ वकीलों का कहना है कि ट्रिब्यूनल की बैठकें बहुत तेजी से हुईं, और वकीलों को बहुत कम समय मिला था। अभियोजन ने आधार के रूप में केवल आंखों से देखे गए बयानों का इस्तेमाल किया, जिसमें कोई डिजिटल साक्ष्य या फोन रिकॉर्डिंग नहीं थी। ये बातें न्याय की निष्पक्षता के सवाल को उठाती हैं।

भविष्य क्या है?

अब बांग्लादेश के सामने दो रास्ते हैं। एक — यह फैसला एक नए राजनीतिक युग की शुरुआत है, जहां शासक अपने विरोधियों को न्याय के नाम पर खत्म कर देंगे। दूसरा — यह फैसला एक बड़ी गलती है, जिससे देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि खराब होगी, और लोगों के बीच असंतोष बढ़ेगा।

मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार अभी भी कमजोर है। उनके खिलाफ बम हमले अभी भी हो रहे हैं। ढाका के कुछ इलाकों में अभी भी रात में गोलीबारी हो रही है। लोग अभी भी डर रहे हैं। जब एक आंदोलन शासन को गिरा देता है, तो उसका बदला लेना आसान नहीं होता।

पूछे जाने वाले सवाल

क्या शेख हसीना को भारत से बांग्लादेश भेजा जा सकता है?

भारत ने अब तक कोई आधिकारिक स्थिति नहीं बनाई है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि भारत इस मामले में राजनीतिक खतरे को देखते हुए एक्सट्राडिट करने से इंकार कर सकता है। हसीना के खिलाफ फैसला राजनीतिक है, और भारत के लिए उन्हें भेजना एक अपराधी को न्याय दिलाने के बजाय एक राजनीतिक शत्रु को नष्ट करने जैसा लगेगा। भारत ने पहले भी राजनीतिक शरणार्थियों को भेजने से इंकार किया है।

2024 के छात्र आंदोलन के दौरान कितने लोग मारे गए थे?

बांग्लादेश के स्थानीय स्रोतों और यूएन की जांच रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई-अगस्त 2024 के दौरान 1,400 से 1,500 लोग मारे गए और 25,000 से अधिक घायल हुए। अधिकांश मौतें छात्रों और नागरिकों की थीं, जिन्हें बंदूकों और ड्रोन से निशाना बनाया गया। ये आंकड़े अभी भी विवादित हैं, लेकिन यूएन ने इन्हें "अस्वीकार्य नहीं" कहा है।

अंतर्राष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल क्या है और इसकी वैधता क्या है?

बांग्लादेश का अंतर्राष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल 2009 में बनाया गया था, ताकि 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुए अपराधों की जांच की जा सके। लेकिन अब इसका इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ किया जा रहा है। यूएन और अम्नेस्टी इंटरनेशनल ने इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। इसकी अदालतें आमतौर पर नागरिक अधिकारों के अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार नहीं चलतीं।

क्या ये फैसला बांग्लादेश के लिए न्याय है या बदला?

ये फैसला बांग्लादेश के लोगों के लिए एक भावनात्मक विजय लग सकता है, लेकिन इसका लंबे समय तक न्याय के लिए असर नहीं होगा। अगर एक राजनीतिक नेता को फांसी दी जाती है, तो अगला नेता भी अपने विरोधियों को फांसी देने का रास्ता अपनाएगा। न्याय का अर्थ होना चाहिए — अपराधी को दंड देना, न कि एक राजनीतिक विरोधी को नष्ट करना।

क्या इस फैसले से बांग्लादेश की राजनीति में बदलाव आएगा?

शायद नहीं। अवामी लीग अभी भी देश के गांवों में बहुत मजबूत है। हसीना के खिलाफ फैसला उनके समर्थकों को और गुस्सा दे सकता है। यूनुस की अंतरिम सरकार अभी भी अस्थिर है, और उनके खिलाफ बम हमले जारी हैं। इसलिए ये फैसला न्याय का संकेत नहीं, बल्कि एक अस्थिर शासन का लक्षण है।

क्या अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस फैसले को स्वीकार करेगा?

अमेरिका, यूरोपीय संघ और भारत ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस फैसले को एक राजनीतिक न्याय के रूप में देख रहा है, न कि एक निष्पक्ष न्याय के रूप में। अगर बांग्लादेश इस फैसले को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार नहीं लागू करता, तो यह देश अंतर्राष्ट्रीय न्याय के लिए एक खतरनाक उदाहरण बन सकता है।

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