जब हम मौसम, वायुमंडल की लगातार बदलती स्थितियों का समूह की बात करते हैं, तो तुरंत जलवायु, किसी क्षेत्र की दीर्घकालिक वायुमंडलीय पैटर्न और मौसमी पूर्वानुमान, भविष्य के मौसम का अनुमान करने की प्रक्रिया याद आते हैं। मौसम हमारे कपड़े, यात्रा और खेती‑बाड़ी को सीधे प्रभावित करता है, इसलिए हर रोज़ इसका ट्रैक रखना ज़रूरी है। मौसम में तापमान, वर्षा और हवा की गति जैसे घटक मिलकर पूरी तस्वीर बनाते हैं—ये सब एक साथ बदलते हैं, और यही कारण है कि मौसम को समझना कभी आसान नहीं।
मौसम और जलवायु दो अलग‑अलग चीज़ें हैं, लेकिन एक‑दूसरे से जकड़े हुए हैं। मौसम तत्काल बदलाव दर्शाता है—जैसे आज का ठंडा सपना या अचानक बरसात—जबकि जलवायु दीर्घकालिक पैटर्न को बताता है, जैसे भारत में मौसमी तीन‑तीन महीने की बारिश का चक्र। इस संबंध को आप सरल शब्दों में इस तरह समझ सकते हैं: मौसम जानकारी देता है "आज क्या होगा", जलवायु बताता है "अगले कई वर्षों में क्या अपेक्षा रखनी चाहिए"। इस कारण, मौसमी पूर्वानुमान बनाते समय विशेषज्ञ जलवायु डेटा का उपयोग करके मॉडल को स्थिर बनाते हैं।
जब हम मौसमी बदलाव की बात करते हैं, तो अक्सर "मौसम परिवर्तन" शब्द सुनते हैं। यह शब्द जलवायु परिवर्तन के छोटे‑छोटे प्रभावों को दर्शाता है—जैसे गर्मियों में देर तक धूप रहना या शरद ऋतु में बारिश का समय बदलना। इन बदलावों का सीधा असर कृषि, जल स्रोत और स्वास्थ्य पर पड़ता है। उदाहरण के लिए, अगर लगातार दो साल तेज़ गर्मी रहे, तो फसलों की पैदावार घट सकती है और पानी की कमी हो सकती है। इसलिए, मौसम विज्ञानियों ने अब समग्र डेटा (उपग्रह, रडार, ग्राउंड स्टेशन) को मिलाकर तुरंत बदलाव को पकड़ने की कोशिश की है।
मौसम से जुड़ी एक और अहम बात है "मौसमी आपदाएँ"। बाढ़, तूफ़ान, तेज़ बर्फबारी और धूप से जुड़ी अधिकतम तापमान का अचानक बढ़ना—all these fall under मौसम आपदा की श्रेणी। ऐसी स्थितियों में सटीक पूर्वानुमान से ही जीवन बचाया जा सकता है। इसलिए, राष्ट्रीय मौसम विभाग और निजी प्रॉडक्ट्स दोनों ही रीयल‑टाइम डेटा का उपयोग करके अलर्ट जारी करते हैं। जब आप अलर्ट सुनते हैं, तो उसका मतलब है कि मौसम विज्ञानियों ने पिछले डेटा, मौसमी मॉडल और वर्तमान परिस्थितियों को जोड़कर एक संभावित खतरा पहचाना है।
अब बात करते हैं "मौसमी पूर्वानुमान" की तकनीक की। आधुनिक पूर्वानुमान सुपरकंप्यूटर्स, मशीन लर्निंग एल्गोरिदम और बड़े डेटा सेट पर भरोसा करता है। इन सिस्टम्स को तापमान, नमी, हवा की दिशा, समुद्र की सतह के तापमान आदि कई संकेतकों को इकट्ठा करके भविष्य की स्थिति तय करनी होती है। उदाहरण के लिए, जब समुद्र के पूर्वी हिस्से में गरम पानी जमा होता है, तो यह अक्सर मॉनसून के शुरू होने का संकेत देता है—ऐसी जानकारी को मॉडल में डालकर अगले दो हफ्तों की बारिश का अनुमान लगाया जा सकता है। इस प्रक्रिया में "डेटा बिंदु" और "सिमुलेशन" दो मुख्य तत्व होते हैं, जो मिलकर सटीकता बनाते हैं।
मौसम से जुड़ी रोज़मर्रा की जिंदगी के कई छोटे‑छोटे निर्णय भी इसी जानकारी पर चलते हैं। चाहे आप किसान हों और बीज बुवाई का समय तय कर रहे हों, या यात्रियों को यात्रा का दिन चुनना हो—सही जानकारी आपके पास होनी चाहिए। इसलिए, कई ऐप्स और वेबसाइटें संक्षिप्त लेकिन विस्तृत रिपोर्ट देती हैं, जिसमें तापमान, आर्द्रता, वायु गति और अगले 48 घंटे का अनुमान शामिल होता है। इन रिपोर्टों को पढ़ते समय "समय" और "स्थान" दोनों को ध्यान में रखना चाहिए, क्योंकि एक ही देश में दो जगहों का मौसम पूरी तरह अलग हो सकता है।
आगे के लेखों में आप पाएँगे कि कैसे मौसम विज्ञान ने ऐतिहासिक डेटा को भविष्य की भविष्यवाणियों में बदल दिया, मौसमी आपदाओं से बचाव के लिए कौन‑सी तकनीकें इस्तेमाल होती हैं, और आपके दैनिक काम में मौसम कैसे मदद कर सकता है। अब जब आपके पास इस व्यापक परिप्रेक्ष्य की समझ है, तो तैयार रहिए—हमारी लेख सूची में हर एक पोस्ट आपको वांछित जानकारी, actionable टिप्स और गहरी समझ देगा।
18 सितंबर 2025 को दिल्ली‑NCR में IMD के अलर्ट के बाद हल्की‑बारिश हुई, तापमान में गिरावट और तेज़ आर्द्रता के साथ, उत्तर प्रदेश‑बिहार में भी समान मौसम की चेतावनी जारी।
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