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बहराइच। जिले में दरगाह का मेला आरम्भ हो गया है। उसी सैयद सालार मसूद गाज़ी की याद में ये मेला प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है जो महमूद गजनवी का भांजा था और महमूद गजनवी द्वारा भारत से लूटी हुई अकूत दौलत की चकाचौंध ने उसे भारत पर कब्ज़े के लिए उकसाया था पर इससे भी बड़ा उसका मकसद था।

सम्पूर्ण भारत से काफिरों अर्थात गैर मुस्लिमों का खात्मा कर पूर्ण रूप से इस्लामिक बनाना। काफ़िर स्त्रियों को सेक्स स्लेव बनाकर पूरी दुनिया में बेचना ( जो आज भी यज़ीदियों के साथ हो रहा है) और धन दौलत कमाना। इसके लिए वो अफगानिस्तान से दो लाख की सेना लेकर भारत आया और पंजाब के अनेकों राजाओं को हराता हुआ उत्तर प्रदेश आया।

जहां कहीं भी उसे विजय मिली उसने बेहद क्रूरता से हिंदुओं का कत्लेआम किया। उसका प्रिय शौक था हिंदुओं के सिर कटवाकर उसकी मीनार बनवाना और उस पर बैठ कर गाज़ी की उपाधि धारण करना।

बहराइच में आकर उसका सामना बेहद पराक्रमी राजा सुहेलदेव पासी की संगठित सेना से हुआ। सुहेलदेव पासी के पराक्रम और कुशल रणनीति के आगे सैयद सालार मसूद गाज़ी की एक न चली और वो राजा सुहेलदेव के हाथों मारा गया उसकी दो लाख की सेना डेढ़ लाख की हिंदुओं की फौज से बुरी तरह परास्त हुई।

इस तरह राजा सुहेलदेव ने सम्पूर्ण भारत को इस्लामिक देश होने से बचा लिया और हिंदुओं को गौरव प्रदान किया। इस युद्ध की गणना विश्व के भीषणतम युद्ध में की जाती है। युद्ध इतना भीषण था कि दोनों तरफ के युद्धबन्दी तक काट दिये गए थे। ऐसे आतताई का अंत कोई मामूली विजय नहीं थी।

पर आपको ये जानकर ताज्जुब होगा कि राजा सुहेलदेव की मूर्ति, फोटो या तैलचित्र आपको बहराइच तो क्या पूरे भारत में कहीं नहीं मिलेगा उनसे सम्बन्धित इतिहास और साहित्य कहीं नहीं मिलेगा। उनसे सम्बन्धित शिलालेख तक कहीं नहीं है।

यहां तक कि बहराइच के 75 प्रतिशत हिंदुओं तक को राजा सुहेलदेव के बारे में कुछ नहीं पता कि बहराइच में कोई इस नाम के राजा भी थे। उनके बारे में जानकारी बूढ़े बुजुर्गों से ही सुनने को मिलेंगी कि वो पृथ्वीराज चौहान के समान ही बेहद वीर, पराक्रमी, बुद्धिमान और आकर्षक थे और युद्ध कौशल में बेहद निपुण थे।

इसके विपरीत सैयद सालार मसूद गाज़ी का मेला दिन प्रतिदिन भव्य होता जा रहा है।उनसे सम्बन्धित साहित्य और जानकारी भी बूढ़े मुस्लिमों के पास सुरक्षित है और प्रत्येक वर्ष इस पर व्यय होने वाली धनराशि बढ़ती ही जा रही है।

प्रतिदिन उनकी मज़ार पर चादर चढ़ाई जाती है, लोबान सुलगता है, इत्र छिड़काव होता है, उनके सम्मान में जलसों का आयोजन होता है। इसी तरह मसूद गाज़ी के सेनापति की मजार को भी यही सम्मान मिलता है जिसकी मज़ार घण्टाघर के पास सड़क के किनारे है।

यहां हिन्दू और मुस्लिम मानसिकता में फर्क देखिये सैयद सालार मसूद गाज़ी हारा हुआ शासक था और सुहेलदेव के हाथों मारा गया था पर मुसलमान इतना सम्मान उसे इसलिये देते हैं क्योंकि उसने लाखों हिंदुओं का कत्ल किया था और भारत को इस्लामिक बनाने के लिए उसने अपना जीवन दांव पर लगाया था, बड़ी संख्या में धर्मांतरण करवाया था।

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